छठ व्रत कथा (Chhath Vrat Katha)

भारत किस्से कहानियो का देश है. हमारी संस्कृति और हमारा देश, ज्ञान और दर्शन के क्षेत्र मे बाकी सभी देशो का गुरु हमेशा से ही रहा है. इसका कारण है हमारे हर त्यौहार, हर रिवाज़, हर देवता, हर मंदिर के साथ जुड़ी सैकड़ों कहानियाँ. हर त्यौहार की तरह ही छठ पर्व के साथ भी कई तरह की कहानी जुड़ी हैं.

राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कहानी

राजा प्रियव्रत बड़े ही वीर और तेजस्वी राजा थे. उनकी पत्नी रानी मालिनी एक बहुत ही सुंदर और पतिव्रता स्त्री थी. दोनो एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे, जीवन मे किसी चीज़ की कमी थी तो केवल संतान सुख की. इस कारण राजा और रानी दोनो ही बहुत चिंतित रहते थे.

एक दिन राज्य मे महर्षि कश्यप का आगमन हुआ. राजा और रानी दोनो उनके दर्शन के लिए वहाँ पहुँचे और उन्हे अपनी परेशानी बताई. महर्षि ने उन्हे पुत्र कामेष्ठी यज्ञ(जिसे पुत्रेष्ठि यज्ञ भी कहते हैं) करने की सलाह दी. जिससे राजा रानी को पुत्र धन की प्राप्ति हुई. वे दोनो प्रसन्नता से भर गये परंतु यह प्रसन्नता अधिक दिन तक नही टिक पाई. उनके पुत्र की कुछ महीनो मे ही मृत्यु हो गयी(कुछ धारणाएँ यह भी कहती है कि उन्हे जो पुत्र पैदा हुआ वह मृत था).

इस घटना ने राजा रानी को अंदर तक तोड़ दिया. दोनो के दिल मे शोक घर कर गया और दोनो ने साथ मे प्राण त्यागने का निर्णय लिया. उन दोनो ने नदी में कूद कर आत्महत्या करने का फ़ैसला लिया.

जैसे ही वे दोनो आत्महत्या करने नदी के पास पहुचे उसी समय वहाँ षष्ठी देवी प्रकट हुई और उन्होने राजा रानी को आत्महत्या का विचार त्याग कर कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखने और सच्चे मन से पुत्र कामना के लिए प्रार्थना करने को कहा. जिसके फल स्वरूप उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई.

उसी दिन से ये अनुष्ठान चला आ रहा है. लोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए षष्ठी माता का उपवास रखते हैं.

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