ठाकुर बन गये शालिग्राम/Shaligram

विष्णु भगवान यूँ तो कई नामों से जाने जाते हैं परंतु उनका वह नाम जो काफ़ी प्रचलित भी है और उनके भक्तों को प्रिय भी है वो है भक्तवत्सल. उन्हे यह नाम इसलिए भी मिला है क्योंकि वे अपने भक्तों के आस पास रहने का कोई मौका नही छोड़ते चाहे इसके लिए उनको कितनी भी परेशानी या अपमान सहना पड़े.

कैसे बने विष्णु भगवान शालिग्राम?

ऐसी ही एक लोककथा है वृंदा की, विष्णु की वह भक्त जिसने प्रभु को पत्थर बना दिया. एक समय एक असुर हुआ जिसका नाम जलंधर पड़ा. जलंधर की शक्तियों से देवताओं मे हड़कंप मच गया. जलंधर को यदि कोई हरा सकता था तो केवल महादेव. इतना बल और तेज होने के साथ ही वह दिखने में साक्षात विष्णु ही था.

जल्द ही उसकी शादी एक राजकुमारी से जिसका नाम वृंदा था, तय हुई. वृंदा बहुत ही सुंदर और सुशील थी. वृंदा विष्णु भगवान की भक्त थी. उसने यह बात जलंधर को नही बताई क्योंकि जलंधर अपने राज्य में किसी को भी देवताओं की पूजा नही करने देता था. जब जलंधर देवताओं और आम लोगों को बहुत सताने लगा और सभी देवता एकजुट हो कर सहायता के लिए महादेव के पास पहुँचे महादेव ने बता दिया की शक्ति में जालंधर, महादेव के ही बराबर है. दोनो को ही उनकी पत्नियों के पतिव्रत की सुरक्षा प्राप्त है. यदि ये सुरक्षा किसी प्रकार जलंधर से छिन जाए तो उसे हराया जा सकता है.

भगवान विष्णु ने बहुत दबाव डालने पर कहा कि वे तब तक ऐसा नही करेंगे जब तक जलंधर स्वयं ऐसा नही करता. देवताओं को एक युक्ति सूझी उन्होने जलंधर को महादेव को हराने का एक उपाय देव ऋषि नारद के हाथों से पहुँचाया. दोनो को ही हराने के लिए ज़रूरी था की इनकी पत्नियों के शील को भंग किया जाए. शिव और विष्णु दोनो ही ऐसा कोई कदम उठाने को तैयार नही थे परंतु जलंधर अपनी असुर प्रवर्ती के कारण ऐसा ग़लत काम करने को तैयार हो गया. यही सब देवता चाहते थे.

जलंधर जब शिव का वेश बना के पार्वती के पास पहुँचा तो पार्वती ने उसे पहचान लिया और वह पार्वती माता का पतिव्रत भंग नही कर पाया. अब सभी देवताओं ने ये बात जब विष्णु को बताई तो वे भी तैयार हो गये. अतः वे सफल हुए और जलंधर को हराने मे महादेव सफल हो गये.

परंतु जब ये सारी बात वृंदा को पता लगी तो उसे बहुत दुख हुआ की उसी के ईश्वर ने उसे धोखा दिया. वृंदा ने भगवान नारायण को श्राप दिया कि”; मैने तुम्हे ईश्वर समझा था और तुम्हारी पत्थर की मूर्ति को भगवान मान कर उसकी पूजा की थी, परंतु तुम वास्तव मे पत्थर ही हो”. इसके बाद भगवान काले रंग का .पाषाण बन गये साथ ही वृंदा भी अपनी तपोअग्नि के कारण तुलसी का पौधा बन गयी. उस काले रंग के पाषाण को शालिग्राम कहा जाता है और इसकी पूजा तुलसी के पौधे के साथ की जाती है. ये शालिग्राम/Shaligram साक्षात भगवान विष्णु का रूप माना जाता है.

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